ये कविता एक लड़के के प्यार के प्राइमरी स्टेज को शब्दों में पिरोने की कोशिश है दोस्तों ये उसी समय की मन की कश्मकश है जब लड़का ये निर्धारित करने में असमर्थ है की वो प्यार से गुजर रहा है या आकर्षण से…
पता नहीं ये प्यार है या आकर्षण है ,
पर हे इस धरा के ईश मेरे अवनीश अब जो मैं नही चाहता वो कुछ और नहीं बस प्रतिकर्षण है ,
जीत लूँगा इस ह्रदय को अब इसी मै आश में ,
चल पड़ा है ये पथिक भी अब इसी विश्वास में ,
पहली बार इस कवि के जीवन में शब्दों का अभाव है ,
शब्द नहीं बरस पा रहे क्योंकि मेरे ऊपर तेरे जुल्फों की छांव है ।
पता नहीं ये प्यार है या आकर्षण है ,
पर हे इस धरा के ईश मेरे अवनीश अब जो मैं नही चाहता वो कुछ और नहीं बस प्रतिकर्षण है ,
जीत लूँगा इस ह्रदय को अब इसी मै आश में ,
चल पड़ा है ये पथिक भी अब इसी विश्वास में ,
पहली बार इस कवि के जीवन में शब्दों का अभाव है ,
शब्द नहीं बरस पा रहे क्योंकि मेरे ऊपर तेरे जुल्फों की छांव है ।
nyc... :)
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