पाना चाहूँ मै तुम्हे फिर से पाकर ,
बताना चाहूँ मै तुम्हे सब अंधेरो से रौशनी में लाकर ,
रखना नहीं चाहूँ मै तुम्हे दुनिया की नज़रों से छुपाकर ,
चाहना चाहूँ मै तुझे बताकर यही अभिलाषा है ,
तू मान जायेगी या नहीं बस इसी बात की जिज्ञासा है ,
खो न दूँ तुम्हे ऐसा कर के बस इसी बात की निराशा है ,
खुश तो इसलिए हूँ की तुम सायानी खुद ही समझोगी बस इसी बात की आशा है ।
बताना चाहूँ मै तुम्हे सब अंधेरो से रौशनी में लाकर ,
रखना नहीं चाहूँ मै तुम्हे दुनिया की नज़रों से छुपाकर ,
चाहना चाहूँ मै तुझे बताकर यही अभिलाषा है ,
तू मान जायेगी या नहीं बस इसी बात की जिज्ञासा है ,
खो न दूँ तुम्हे ऐसा कर के बस इसी बात की निराशा है ,
खुश तो इसलिए हूँ की तुम सायानी खुद ही समझोगी बस इसी बात की आशा है ।