बेवकूफी हम करते हैं और बदनाम प्यार होता है , कुछ लोग इन्ही तरीके के कारणों से खुदकुशी कर लेते हैं जिस चीज को मैंने बहुत करीब से महसूस किया है क्योंकि हमारे बीच का ही कोई इस दौर से करीब एक पहले गुज़रा था ,ये कविता का जन्म ऐसी ही कुछ घटनाओं का परिणाम मात्र है ।
जब बच्चा स्कुली जिंदगी से निकलता है और उसे किसी के प्रति आकर्षण या प्यार होता है ,तो किस तरह से स्थिति बदलती होगी की बच्चा ये सब करने पे मजबूर होता है ये कविता उसी चीज का विश्लेषण करने की कोसिस करेगी और अंत में कवि ने अपनी राय भी रखी है ।
मेरा आह्वान
चरण १
वो पुष्पों सी नाज़ुक ,
वो शबनम सी सुन्दर । वो उतरी इस धरा पे ,
देवी का रूप धरकर ।।
पहली नज़र जब मई तुझे देख पाया ,
खुद को ख्यालों में डूबा सा पाया।
तेरे ही ख्यालों में मैंने गोता लगाया ,
कसम ये खुदा की मै बहार ही आ न पाया।।
तेरे जुल्फों क पीछे से मुखड़े का दिखना ,
लगता है चंदा क पीछे यूँ बादलों का छुपना ।
कुछ छोटी सी बातों पे तेरा रूठ जाना।,
लगता है चंदा पे कजरी का छाना ।.।
शाखों ने तस्वीर बनाई आँखों में ,
सुंदरकोई चीज तो तू ही दखती है ।
मेरी नज़रों पे तू कुछ यूं छाई सी रहती है ,
कहानी कुछ कुमुदिनी पे भ्रमर के मचलने सी लगती है ।
चरण २
सब बंधनों को तोड़ कर ,
अब रुख हवा का मोड़ कर।
चलहम बसें दुनिया के एक छोर पर ,
सपनों का एक घर जोड़कर ।.।
संभव नहीं हम दो ग्रहों का मेल ,
नहीं है कोई ये मामूली सा खेल ।
छोड़ दे ये आस अब ।
नहीं है तुझ पे भी विश्वास अब ।.।
दर्दका ये प्याला न पिया जा रहा ,
अब कोई भी हल इस्पे न भा रहा ।
अब इस धरा क को त्याग दूंगा ,
इस जां को तुझ पर वार दूंगा। ।.।
चरण ३ (कवि की राय )
इश्क़ की इस राह में ,एक सुंदरी की चाह में,
दर-दर भटकता तू फिरा ,दुनिया की नज़रों मे गिरा ।
तू समझ बैठा राधा को मिल गया है कृष्णा ,
पर ठहरी वो तेरी मृगतृष्णा ।. ।
आँखों की पट्टी खोलकर ,
दुनिया को ढंग से देखकर,
दे दे चुनौती वहीं डंके की चोटपर ,
मै वापस जर्रोर ही आऊंगा ,
प्रियतम तुझको मई ही लेकर जाऊंगा।
स्थापित हर गलत विचार को विस्थापित कर के ही जाऊँगा। ।।
कमजोरी मत साबित करना ,
नज़ीर ही गलत मत स्थापित करना ।
आह्वान करता हूँ तुम्ही से विराम देता हूँ यहीं पे ।.।