Thursday 16 October 2014

एक बंधे समां को छोड़ आज ,
नया समां बाँधने  हम चले ,
ये भूल है दुनिया वालों की
की समां बांधना   मुस्किल है  ।
हम मतवाले और मस्ताने जहाँ कहीं भी होते हैं
सच बोलूं तो सही यही है बस दरकार  हमारी होती है ,
और समां वहीँ बन जाता है।
हर क्लेश वहां से मिटता  है ,
दीप  ख़ुशी का वहीँ देदीप्यमान हो जाता है। .
एक  नया जोश , और नया जूनून ,
एक नयी उमंग और नया रंग ,
लोगों में फिर से सजती है ,
हर मृतक भी फिर से जगता है ,
मुरझे फूल दोबारा खिलते हैं ,
ये बस्ती फिर से हंसती है ,
हम मतवाले और मस्ताने जहाँ कहीं भी होते हैं ,
बस समां वहीँ बांध जाता है।

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