Wednesday 8 April 2015

शायद ऐसा होगा

देवी तुम मेरा ह्रदय तोड़ तोड़ कर क्यों खुद टूट रही इसे जोड़ जोड़ कर ,
खोने के डर  से तुझे आज इजहार किया मैंने शिहर शिहर  ,
न करने पर क्यूँ रोई तुम एकांतवास में विफर विफर ,
यदि तेरे नजरिये से देखू तो यदि सूरज को सूरज कहने में ये जग ही रूठा जाता है ,
तो विश्वास तुम्हे मैं ये देता की मेरे लिये अब ये जानो ये सूरज नहीं है चंदा है ,
या व्यक्तित्व कोई ये गन्दा है ,
पर क्या मेरे यह कह देने से ये सच जायेगा बदल बदल ,
और इन बातो  को सुनकर भी तुम जाओगी सच को निगल निगल ,
पर मुझको क्या लेना इससे ये सूरज हो या चंदा हो या व्यक्तित्व कोई ये गन्दा हो ,
जो होता है होता  ही रहेगा  सूरज तो पृथ्वी को वो प्रकाश से भरता ही रहेगा ,
औरों ने जब ये बोला था फँस गए हो अब तुम मेरे यार ,
तो टाल दिया था उन बातों को कई बार मैंने हँस हँस  कर ,
माना  की दुनिया वालों से जी रही आज तुम  डर डर  कर ,
माना की रीति रिवाजों ने रखा है तुमको घेर घेर ,
प्रण  मैं तुमसे ये करता हूँ, बरसूँगा इन रीति  रिवाजों पर मै  घेर घेर घनघोर घनघोर ,
मैं  ठहरा मूरख था  चीख रहा था  सत्य  प्रमाण को मांग मांग ,
पर नहीं पता थी मुझे हकीकत प्रमाण नहीं चाहिए होता उसको  है जो  है शत प्रतिशत सत्य सत्य । …………………। 

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