Wednesday 8 April 2015

मन तो यही था

मन  तो  यही था  ,
इस  घडी को बांध लूं मैं  ,
लम्हे को इस अब  कैद  करलूं मैं  ,
देखता रहूँ तुझे एक टक  मैं निहारकर  ,
छू लू  तुम्हे इस स्वप्न सी हकीकत  को  विश्वास  में  बदलकर  ,
क्योंकि अब थक चूका  हूँ तेरी यादों में जी -जी  कर  ,
मन तो खुस है  इश्क़  की इतनी सी रह चलकर भी  ,

मन  तो  खुश  होता  है तेरी यादों  में  जलकर  भी  ,
गीता  में  तो  मन को  जीतने  वाले  को  विश्वविजेता सा माना  गया  है  ,
पर मुझे  विश्वविजेता  नहीं  बनना  है  ,
मुझे  तो  मोहब्बत  की इसी मझधार  में ही रहना  है  ,
क्योंकि  शायद  एक  किनारे  पे  खुसी नहीं  है  ,
और  दूसरे  पे मैं  खुश  नहीं  रह  सकता  । . ।  

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