Saturday 7 May 2016

सुबह का जगाना

mothersday special याद आती है वो सुबह जब तुम मुझे जगाती थी ,
अंगड़ाइयां लेकर मैं  सो जब जाता था ,
तेरे जगाने से रजाई की पकड़ और मजबूत बनाता था ,
पर तेरा रजाई को प्यार से हटाना ,
और हाथों से सहलाकर ,रजाई की गर्मी को भुला देना ,
अब बहुत याद आता है ,
फिर मैं  जग जाता था ,तेरे हाथों  से मिली ,
 गर्मी को लेकर लग जाता था ,
दिन गुजर जाते हैं अब तो ,
इस मस्तक को उगते सूर्य की किरणों  आलिंगन किये हुए ।
बहुत कुछ बदल गया है  , बहुत शोर भी हो चूका जिंदगी में ,
शायद खुद को सुन पाना बहुत मुश्किल है ,
और वो पन्नों  के सामने ही कलम   के साथ  ही संभव है ,
पर तू शांत  है अपनी उसी स्थिर जिंदगी के साथ ,
बिना सवाल किये जो एक तरीके से वरसों से अपने को दोहराती चली आई है ।


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